गरीबा
महाकाव्य
नूतन प्रसाद
1. चरोटा पांत
बिना कपट छल के प्रकृति ला मंय हा टेकत माथा ।
बुद्धिमान वैज्ञानिक मन हा गावत एकर गाथा ।।
बाढ़ सूखा अउ श्रृष्टि तबाही जन्म मृत्यु मन बाना ।
बेर चन्द्रमा नभ पृथ्वी अंतरिक्ष सिंधु मन माला ।।
बालक के हक हे दाई संग कर ले लड़ई ढिठाई ।
बायबियाकुल शक्तिहीन के प्रकृति करय भलाई ।।
बेर करिस बूता बेरा तक, बड़बड़ाइस नइ ठेलहा बैठ
बद्दी मुड़ पर कहां ले परही, बढ़ा डरिस जब करतब काम.
बूता के छिन सिरा गीस अब, ब्यापत दर्द देह भर खूब
बढ़ना चहत अपन बासा बल, बेंग परत नइ पर के बीच.
बेर गुनिस – “”बिलमत बिन बूता, बरपेली होहूं बदनाम
बढ़ना अब बढ़िया काबर के, बढ़ागे जब करतब सब काम.
बरजत हवंव रात अउ दिन ला, बेंवट मन नइ धरिन धियान
बुजरुक ला बेंझुवा बिजराथंय, बढ़े चढ़े लइका बइमान.
बस नइ चलय बंड के सम्मुख, बिन कारण काबर बिपतांव !
बरगलात नइ बनत त बोचकंव, बर पीपर के बिसर नियाव.
बनत रात अउ दिन मन वर – वधु, बेंग परय मत खुशी मं गाज
बपरा बपरी ब्याह करंय अउ, बासी झड़कंय बांट बिराज.
बेर बेर शुभ मुहरुत बेरा, बिया, बलाये मं नइ आय
बर्तन बांस बांसुरी बिजना, बचकरी बाजा मिल नइ पाय.
बरा बरी बटरा बंगाला, बरके मं बर जहय बिहाव
बजनी बजना बुधमानी नइ, बुड़बुड़ चुपकर बढ़ंव अबेर.
बोरिया बिछना बांध सुरुज घर चलिस चुको के पारी ।
बाद रात – दिन मन बिहाव कर खुशी मनावत भारी ।।
दिन हा ठोसरा दीस रात ला – “”उच्छा कर मंय करेंव बिहाव
पर ए बात उमंझ नइ आवत, कोन किसम जीवन निर्वाह –
मंय ओग्गर गोरिया सुन्दर हंव, लकलक बरत असन तन मोर
पर तंय हवस मोर ले उल्टा – कोइला अस करिया तन तोर.
अब यदि मंय हा चलत तोर संग, सब झन करिहंय हंसी मजाक-
जुग जोड़ी नइ फभत एक कन, उत्तर दक्षिण दिशा समान”
पति – एल्हना सुन रात हा बोलिस – “”जानत तोर कपट के चाल
बगुला असन देह मनमोहक, मगर ह्मदय मं रखत मलाल.
मंय हा कोइला अस करिया हंव, लेकिन ह्मदय हवय झक साफ
छलप्रपंच ले रहिथंव दुरिहा, सब ला करथव शीतल शांत.”
दिन बोलिस – “”तंय समझदार हस, तभो देत हंव नेक सलाह
बिन मिहनत मांई असाद अस, मत करना जीवन निर्वाह.
सुरुज सियान के राह चलन हम, पीछू डहर पांव झन जाय
जतका काम भाग मं आवत, पूरा जोंगन रहि के टंच.
हमला फुरसद टेम मिलय तंह, दूनों मिलन फजर अउ शाम
झगरा करके मया करन हम, दुख ला काटन दुख सुख भूल.
हम तंय सदा एक संग रहिबो, बढ़िहय घृणा शत्रुता बैर
बहुत समय के बाद भेंट तब, बढ़िहय आकर्षण रुचि प्रेम. ”
रात किहिस – “”तंय समझावत हस, दर्जा देवत अपन समान
तोर बात ला मंय हा मानत, मंय चलिहंव तोर मति अनुसार. ”
एकर बाढ़ रात हा सोचिस – प्रथम मिलन के पबरित टेम
दिन के साथ करंव मंय ठठ्ठा, ताकि बढ़य ए प्रेम प्रवाह –
“”अबला के कब चलिस सियानी, चलिहंव सुन पति के आदेश
पर तुम “सातो वचन’ निभाहव, तंह नइ ब्यापय विपदा क्लेश.”
रातबती हा अंचरा ला धर, परथय अपन मरद के पांव
चिरई, पेड़ ला अंखिया बोलिस – “”सुघ्घर निपटिस इंकर बिहाव.
नाचत भड़त वक्त हा कटगे, हम सोसन भर आनंद पाय
पर अब इहां निरर्थक बिलमत, इंकर प्रेम मं परिहय आड़.”
पेड़ घघोलिस – “”का समझाथस, जानत हमूं भेद के बात
कोन मुरुख हा बीच मं छेंकत, चटरी, चुट लू – जीव जरात ! ”
बपरी चिरई गपगपागे तंह भागिस खोंधरा कोती ।
पेड़ कलेचुप होगे तंहने बरत प्रेम के जोती ।।
मिलिन रात अउ दिन बिन बाधा, प्रेम प्यार के कतरा माप
दिन हा ओ तिर ले सल्टिस तंह, करिया होय धरिस अतराप.
राज करत हे रात सबो तन, अंधनिरंध कुलुप अंधियार
पेड़ लगत हें भूत बरोबर, भांय भांय बोलत सब खार.
चिंहुर अवाज शांत हे बिल्कुल, सांय सांय हा कंस डर्हुवात
बिरबिट करिया हाथ सुझत नइ, रात शक्ति पल पल बढ़ जात.
अंधविश्वासी मन कहि देतिन – भूत प्रेत मन करत निवास
भगव इहां ले जीव बचावव, अब नइ दिखत प्राण के आस.
नइ अंजोर – सिमसाम सबो दिश, पेड़ पान मन सन गप खाय
समय रात ला अधुवन अक लिल, अउ जादा बर मुंहू लमाय.
उही बखत खोभा अउ चुम्मन, उही निझाम ठउर मं अैन
उंकर पास हे एक नवा शिशु, जउन दिखत हे बरत समान.
खोभा कथय – “”हवय सन्नाटा, अपन काम ला कर लन पूर्ण
जे नानुक ला लाय हवन हम, इंहे छोड़ के झप भग जान.”
चुम्मन किहिस – “”कहत हस ठंउका, इहां दिखत नइ एको जीव
हमर पाप ला कोन देखिहय, हम अब झपकुन बुता सिरोन. ”
खोभा अउ चोवा मन निष्ठुर, करिन धरापसरा ए काम –
नानुक शिशु ला उंहे छोड़ दिन, अपने मन लहुटिन चुपचाप.
जे बालक पलका पर सोतिस, जठना बिगर भूमि पर सोय
देखे बर कतको झन आतिन, पर अब लगत अपन दुख रोय.
मोहरी दमऊ अउ दफड़ा बजतिस, मगर इहां सुनसान सतात
महतारी के दूध ला पीतिस, इहां खुद के आंसू मुंह जात.
एकरे रोना सुन के आइस, सुद्धू नामक एक किसान
बालक उठा के मुंह ला चूमत, कथय – “” इहिच बालक भगवान.
नारफूल के साथ फेंक दिन, दया मरिन नइ निर्दयी जीव
दुनिया भटही तइसे लगथय, छल धोखा मानवता बीच. ”
सुद्धू अपन हाथ ला देखिस, लाल रकत कतिंहा ले अैस !
शिशु के गला कटे जानिस तंह, होय सुकुड़दुम गप खा गीस.
तुरुत फूल ला लान लीस घर, तंहने बुड़गे फिकर के ताल-
होय स्वस्थ बालक के तबियत, मंय अब रखिहंव एला पाल. ”
अंकालू ला बला के लानिस, कहिथय – “”एकर कर उपचार
फूल असन शिशु के जीवन ला, दवई जोंग के तिंहिच उबार. ”
अंकालू हा शिशु ला देखिस, प्यार करत हे मर के सोग
कहिथय – “”शिशु हा मन ला मोहत, प्रकृति के अनुपम उपहार.
नानुक के मुंह नव चंदा अस, लेबना अस केंवरी हे देह
लसलस गरु गोलेन्दा भांटा, बालक पर आवत हे स्नेह. ”
अंकालू उपचार करत हे – धोइस घाव ला कुनकुन नीर
घाव मिटाये दवई ला जोंगिस, कर लिस पूर्ण मदद के काम.
अंकालू हा लहुट गीस घर, सुद्धू किंजरत नानुक पाय
नानुक हा कुछ क्षण सोवय तंह, दरद के कारण झप जग जाय.
सुद्धू फिकर मं लेत नींद नइ – टहल करत जगवारी ।
रुई फहा मं दूध पियावत थम थम देखत नारी ।।
अपन काम मं सुरुज उपस्थित, सब अतराप बगर गे घाम
सुद्धू शिशु के देखभाल मं, चेत जात नइ दूसर कोत.
सोनू हा सुद्धू तिर पहुंचिस, जउन गांव के प्रमुख किसान
सुन्तापुर ला कांख मं राखत, ओकर दब मानत ग्रामीण-
जइसे धुंका बंड़ोरा आथय, तब उड़ जात धूल कण पान
सुद्धू हा सोनू ला देखिस, धक ले होवत ओकर प्राण.
सोनू बोलिस -“”खरथरिहा अस, मुंह झुलझुल त्यागत हस खाट
खेतखार के बिरता जांचत, मेड़ पार के करत सुधार.
पर आश्चर्य मं डारत मोला – तंय घर मं रबके हस आज
कुरिया घुसर काम का जोंगत, मोर पास तंय हा कहि साफ ? ”
सुद्धू अपन बचाव करे बर, सोनसाय तक खुश हो जाय
स्वागत करत देत हे आदर, शिशु ला देखा पाय उकसात.
सुद्धू हा बालक ला देवत, पर सोनू छिटकिस कुछ दूर
कथय – “”टुरा ला कहां पाय तंय, काबर मुड़ पर लाय बवाल !
कहुंचो ले तंय चुरा लाय हस, तब घुसरे हस भितर मकान
अगर बेदाग बचे बर सोचत, सच घटना ला फुरिया साफ ? ”
सुद्धू मरिस सोग बालक पर, बन के रक्षक उठा के लैस
पर बलाय बिन लांछन आवत, सुद्धू कलबलात हे खूब –
“”मंय निर्दोष – गिरे नइ नीयत, काबर व्यर्थ कलंक लगात !
बालक परे रिहिस बिन पालक, तेला मंय हा धर के लाय.
मोर सहायक एको झन नइ, ठुड़गा पेड़ असन मंय एक
बालक पालत मन बोधे कहि, अब मंय सकिहंव बिपत खदेड़. ”
सुद्धू के सुन सोनू बिफड़िस- “”सब ले दयावान तंय एक
काकर अंस कहां तंय जानत, मन अनुसार करत हस टेक.
गांव के रीति नीति ला जानत – अगर एक पर दुख हा आत
ओला जमों गांव भर भोगत, भोगत कहां कष्ट बस एक !
लाय बवाल सबो झन बर तंय, ओकर ले तंय बच निर्दोष
अगर टुरा ला पास मं रखबे, तब फिर डांड़ के रुपिया लान.”
एेंच पैंच नइ जानत सुद्धू, बला ले रक्षा के हे चाह
रखे अपन तिर नगदी रुपिया, सोनसाय के असलग दीस.
सोनू हा रुपिया धर रेंगिस, तंह ग्रामीण घलो आ गीन
बालक के संबंध मं पूछत, सुद्धू के चिथ खावत मांस.
घंसिया बोलिस -“”सुन सुद्धू तंय, बालक ला लाने हस व्यर्थ
तंय सोचत हस – बने करे हंव, लेकिन काम कुजानिक खूब.
लइका जहां युवक हो जाहय, मात्र देखिहय खुद के स्वार्थ
तोर मदद ले भगिहय दुरिहा, कभू करय नइ सेवा तोर.
मानव जीवन हा निश्चित नइ, मृत्यु पहुंच के हरही प्राण
तेकर ले तंय रहि एके झन, ए बालक ला कभु झन पोंस.”
उही ठउर मं केड़ू हाजिर, ओहर हा करथय कुछ क्रोध
कहिथय -“”मोला उमंझ आत नइ-जग हा काबर निष्ठुर खूब !
ए शिशु हा मानव के वंशज, एहर नइ कुछ घृणित पदार्थ
जेमां सब झन घृणा करत हव, फेंके बर सब देत सलाह !”
केड़ू हा सुद्धू ला बोलिस -“”तोर नाम होवत बदनाम
तंय हा सबले दोषी मनखे, पर तंय जमों बात ला भूल.
बस बालक के रक्षा ला कर, ओला खुद कर रख के पाल
अंतिम बखत के लउठी बनिहय, मदद के ऋण ला देहय छूट.”
मुटकी किहिस -“”मंहू मानत हंव-केड़ू हा बोलत हे ठीक
हम मानव पशु पक्षी पालत, उंकर साथ मं स्नेह दुलार.
यदि ओमन बीमार परत हें, उंकर करत सेवा उपचार
याने उनकर कष्ट हरे बर, हम रहिथन हर क्षण तैयार.
तब ए शिशु मानव के कंसा, एला तंय कभु झन दुत्कार
एकर जीवन के रक्षा बर, अपन धर्म के रक्षा राख.”
सुद्धू हा सांत्वना पैस तंह, ओला मिलिस खुशी संतोष
सुद्धू किहिस – “”मोर ला सुन लव, तज आलोचना सब तारीफ.
शिशु के मंय सेवा बजात हंव, पर ए मरत खूब जम भूख
एकर पेट पोचक के घुसरे, रहि रहि करथय करुण विलाप.”
कथय सुकलिया -“”जान लेंव मंय, लइका ला ब्यापत हे भूख
ओला मोर गोद मं देवव, पिया दुहूं मंय सक भर दूध.”
लीस सुकलिया हा बालक ला, लुगरा मं रखलिस मुंह ढांक
तंह बालक हा दूध ला पीयत, पेट भरिस तंह सोसन शांत.
किहिस सुकलिया हा सुद्धू ला – “”लइका हा जब भूख मं रोय
मोर पुकार ला करबे तंय हा, ओला पिया दुहूं मंय दूध.”
केड़ू हा सुकलिया ला बोलिस -“”तंय हा करे हवस उपकार
एहर सच्चा धर्म आय सुन, बालक के दूध दाई आस.
बालक ला तंय दूध पियाबे, बचा के रखबे ओकर प्राण
मानवता के रक्षा होहय, प्राणी मन पर हे अहसान.”
कथय सुकलिया -“”मोर बात सुन – मंय नइ चहंव मान यशगान
मोर हवय एक बालक सुघ्घर, ओला मंय पियात हंव दूध.
ओकर साथ यहू लइका ला, पिया दुहूं हरहिंछा दूध
देखरेख ला सुद्धू करिहय, सच मं उही हा पालक आय.”
अब मनसे मन उहां ले लहुटिन, सुद्धू हा बंधाय हे प्रेम
शिशु के रक्षा करत हे ओहर, इसने निकलिस कुछ दिन रात.
एक दिन सुद्धू खेत ले लहुटत, तब अंकालू हा मिल गीस
अंकालू हा ठट्ठा मारिस -“”दुर्लभ होगे दर्शन तोर.
लगथय-तंय लइका ला राखत, ओकर सेवा करथस खूब
ओकर तबियत अभि कइसे हे, क्षेम खबर ला फुरिया साफ?”
सुद्धू कथय -“”कुशल हे बालक, तोर कृपा बस तोर प्रयास
तंय ओकर उपचार करे हस, तभे बचे हे ओकर जीव.
तोर राह पर मंहू चलत हंव, लइका ला राखत हंव पाल
यदि एको छिन दूर रहत हंव, मन हा अकुला जाथय खूब.
थोरिक पहिली खेत गेंव मंय, उहां रिहिस हे गंज अक काम
पर बालक के याद हा आइस, तंहने लहुट जात घर कोत.”
अंकालू हा हंस के बोलिस -“”तोला झींकत पुत्र के प्रेम
अपन मकान रबारब जा तंय, ओकर सेवा कर तंय नेम-
शिशु के पालन होत कठिन मं, बड़े परीक्षा एहर आय
पर तंय सफल होत हस मितवा, एकर फल मं मिलिहय मीठ.”
अंकालू हा अपन राह गिस, सुद्धू खबखब पांव बढ़ैस
ओहर अपन ठिंहा मं अमरिस, पहुंच गीस बालक के पास.
छोकरा चमक उठे हे हुरहा, रोत नयन-जल बाहिर आत
सुद्धू पुचकारत दउड़िस अउ, चुमुक उठा लिस नानुक बाल.
बालक पवई हा मंहगा परगे, परिस चिची पर बथबथ हाथ
घिनमिन करत नाक भन्नावत, तंहने खुद हंस-पीटत माथ.
कथरी जठा-पुनः ढलगा अब, सुद्धू गंदला करथे साफ
कउनो काम तियारत नइ पर-मया हा खुद देवत आदेश.
पिता पुत्र मं चलत अइसने सुघ्घर गदामसानी ।
पौधा क्रमशः बढ़थय तिसने मंय सरकात कहानी ।।
मुरहा ला भुरियाय ददा हा गावत सुर धर गाना ।
कहां लुका गेंव सुवा ददरिया कहां बिस्कुटक हाना ।।
बालक के मुंह देखत सुद्धू, बोलिस -“”मोर मयारु फूल
तोर नाम मंय धरे चहत हंव, आय समय उत्तम अनुकूल.
राम कृष्ण ध्रुव राख सकत हंव, पर ए कारण अरझत बात-
ओमन कुंवर बड़े अदमी के, गरीब-जिनगी संग का साथ !
परे डरे अउ हिनहर निर्बल, सब संग चलबे देख अगोर
झन असकटा बतावत हंव सुन-फोरत नाम “गरीबा’ तोर.
पुत्र हा सोय बाप के कोरा, तुलुल मुलुल कर गोड़ हलात
मुड़ी हलात आंख मटकावत, मानो नाम करत स्वीकार.
दिन अउ रात नियम बंध चलथंय, बइठ पांय नइ गाड़ के खाम
बढ़त गरीबा घलो समय संग, करत ददा के नींद हराम.
जब टिकटाक चले बर धरथय, अंदर कहां रहत थिरथार !
सुद्धू हलाकान हो दउड़त, पावत नइ उदबिरिस के पार.
चिमटत कभू-दुलारत कुछ रुक, क्रोध मया उपजत एक साथ
अगर गरीबा बुद गिर जावत, तुरुत उचा लेवत धर हाथ.
सुद्धू के घर अैस फकीरा, देखत गम्मत रहि चुपचाप
बाप ला बाती केंदरावत कहि, आत हंसी हा अपने आप.
सुद्धू हा बिपताय नइ देखिस, पर मेचकू कूदिस अंटियाय
पीछू तन ले झटक फकीरा, डेड़ बिता ला कबिया लीस.
उझल गरीबा थपरा मारत, मूंछ चुंदी के बुता बनात
सुद्धू ला तब कथय फकीरा -“”बिन कारण तोर टुरा सतात.
बिजनेवरा मन बुजरुक तक ला, ठंउका थोरको नइ डर्रांय.
सांप आग ला हंस के धरथंय, अनुचित उचित समझ नइ पांय.”
छुइस गरीबा के तन ला तंह, कथय फकीरा हा मुंह फार-
“”चढ़े बुखार तोर छोकरा ला, बयचकहा, बइठे हस कार !
नजर डीठ हा गपगप पकड़े, काजर लान आंख पर आंज
छेना राख लान मंय फुकिहंव, तुरुत करंजा-ऊपर गाज.”
सब समान पाइस तंह आंजत एकदम जोरव फकीरा ।
मगर गरीबा काजर मेटत वह बिजनेवरा खीरा ।।
देख गरीबा के मुंह करिया, दुनों सियान हंसत बेहाल
बेलबेलहा हा उंकरो मुंह पर, करिया रंग तुरुत दिस पोत.
अब दूनों झन कठल के हांसत, हंसत पेट हुलकी धर लीस
सुद्धू कथय -“”गरीबा बोलत-तुम्हर बुद्धि भुलकी दस बीस.
तुम शंकालु रुढ़िवादी हव-जग ला लेगत पाछू कोत
नजर डीठजादू टोना नइ, तब ले करत खटकरम मंत्र.”
“”वास्तव मं नइ टोनही रक्सा, ठुंवा ठामना प्रेतिन भूत
हमला ठग मन टिंया ले ठग दिन, लेकिन कहां चढ़िस कभु चेत !”
अतका कहि अउ कथय फकीरा -“”दर्पण एक खोज टुप लान
अपन रुप ला देख गरीबा, कइसन खेल करत हो भान !”
जोजिया डरिस फकीरा कतको, पर सुद्धू हा ढंग लगात-
“”तंय जानत हस मोर हाल सब, धन रुपिया के रहत अभाव.
पानी आय हमर बर दर्पण, जेहर मिल जावत हर ठौर
यदि तंय पानी ला मांगत हस, निपटा सकत तोर मंय मांग.”
“हवभई’ ला सुन सुद्धू झपकुन, एक सइकमा जल धर लैस
पानी देख गरीबा डरगे, धर नइ पात एक क्षण धीर.
देखिस अरन बरन खुद के मुंह, निश्छल ह्मदय टुरा डर्रात
गदफद जल जा पीट दीस अउ, अबड़ जोर रोवत चिल्लात.
सुद्धू अपन पुत्र ला पाथय, गाथय गीत कराथय शांत-
“”पानी हा नुकसान बताहय, एक तो लइका अइसे क्लान्त.
देख फकीरा तंत्र मंत्र हा, एको कनिक दीस नइ लाभ
तंय खटकरम करे हस जे अभि, मोर पुत्र ला परसिस हानि.
एकर तन पानी मं भींगिस, डर हे स्वास्थय बिगड़ झन जाय
मंय एला अब दवई पियाहंव, ताकि ठीक रहि करय किलोल.”
कहि के सुद्धू दवई पियावत, गाय दूध मं सरपट मेल
कुछ पश्चात जपर्रा सुतगे, अपन ददा ला मार लतेल.
सनम के याद फकीरा ला आवत, जउन सनम ओकर संतान
दीस फकीरा हा आशीष अउ, उहां ले सरके करत उपाय.
“”तोर टुरा के नाक बजत अब, कृषक फसल रक्षक अरा राख
रउती भर सुख पाय गरीबा, बने कटय दिन हफ्ता पाख.”
दे आशीष चिमट चूमा मंग, चलिस फकीरा ओ तिर छोड़
सोनू बइठे आंख लाल कर, तेकर तिर मं बिलमिस गोड़.
तिजऊ जउन पहिलिच के अमरे, करत प्रार्थना हलू अवाज-
“”एक आसरा धर आये हंव, किसनो कर निफरा भई काज.
पांच हजार नोट मांगत हंव, ओकर संग दू Ïक्वटल धान
महिनत कर मंय लहुटा देहंव, गिरन पाय नइ मोर जबान.”
सोनू कहिथय -“”दार गला झन, फुरसुद कहां सुने बर टेस !
मंग उधार तंय गपक जबे चुप, तोर पास कुछ धन नइ शेष.”
“”अपन चई भर लेस मोर धन, बद मितवारा कर के प्रीत
जरुरत बखत देखावत ठेंगवा, तब फिर हम तुम कइसन मीत”
“”मोर पास अटपट झन गोठिया, फोकट बात बढ़ा झन लाम
चल तो भाग इहां ले झपकुन, कंगला के ए तिर नइ काम.
मोर मित्र हें धनी प्रतिष्ठित, मंय खुद हंव पुंजलग विख्यात
कंगला संग यदि करत मितानी, भर्रस गिरही गरिमा मोर.”
सुनते तिजऊ सुकुड़दुम होवत, थमना मुश्किल अइसन ठौर
अब सोनू के डेहरी त्यागत, लाचारी वश-मरत कनौर.
सोनसाय के पुत्र एक झन, जउन हवय बालक के रुप
बहुत सुरक्षा प्यार मं पालत, धनसहाय हे ओकर नाम.
धनसहाय ला परस पाय हे, ओला धर आथय ए पार
धनवा कूदत हे फकीरा तन, मार कुलच्ची पाय दुलार.
बालक पाय फकीरा अभरिस, परस ला बरजत सोनसहाय-
“”बइकुफ, किलकत धनवा ला तंय, घर के बाहिर काबर लाय !
कते मनुष्य के कइसन आदत, पर के मन के कोन ला ज्ञान
नजर भूत ला चढ़ा देत यदि, कतका हलाकान-कुछ भान ?
काम अंड़त नइ तोर बिगर सुन, ए तिर नइ होवत शुभ नेंग
धनवा ला कुछ होय के पहिली, ओला धर के अंदर रेंग.”
यद्यपि सोनू, परस ला डांटत, मगर परस ला परत नइ घाव
लगत फकीरा ला बरछा अस, अंदर ह्मदय करत हे हाय.
काबर रुकय फकीरा-छोड़त सोनू के दरवाजा ।
एक घरी नइ रुकना चहिये-जब अपजस अंदाजा ।।
मगर स्वार्थ हा पूर्ण होय या भविष्य मं कुछ आशा ।
तब अपमान ला सहना चहिये-सुनना चहिये गारी ।।
रुकिस फकीरा ढीठ बने तब, अंकालू हा उंहचे अैस
ओहर सोनसाय ला बोलिस- “”तोर पास मंय हा ऋण लेंव.
ओकर मूर ब्याज कतका अस, कहि हिसाब ला एकदम साफ
मोर कष्ट मं तंय चलाय हस, तब पटाय बर मोरो फर्ज.
जउन जमीन रहन राखे हंव, वापिस चहत पटा सब नोट
सकले हंव मुश्किल मं रुपिया, कष्ट झेल मर दुख सहि भूख.”
सोनू अंतर कंतर जोड़िस, कुटिल हंसी हंस करत हिसाब-
“”जतका रकम धर के लाने हस, कोन्टा तक बर पुर नइ पात.
तोर भूमि तो पहिलिच बुड़गे, भइगे रख-भग जतका लाय
बचत कर्ज ला छोड़ देत हंव, तोर बुती अब जुड़ नइ पाय.”
अपन जमीन उबारे खातिर, रुपिया धर अंकालू आय
लेकिन उपक बुड़ा मं बुड़गे, ओकर ह्मदय करत हे हाय.
अंकालू हा तुरते गिन दिस, बसनी के रुपिया ला हेर
सोनसाय के नाम खेत लिख, ओतिर ला तज दीस अबेर.
चलिस फकीरा ओकर पाछू, अंकालू केंघरिस दुख साथ-
“”अपन जमीन छोड़ाय आय मंय, मगर जमीन पूर्व बुड़ गीस.
मोर पास मं रिहिस हे रुपिया, उहू ला हड़पिस सोनसहाय
मोर दूध अउ दुहना फूटिस, जमों डहर ले लगगे हानि.”
कथय फकीरा- “”तंय ठंउका हस, वास्तव आज होय बर्बाद
मगर काम ला नेक करे हस-अपन दिमाग रखे हस शांत.
दुखड़ा रोय अदालत दउड़त, खाहंय मांस वकील-दलाल
पूरा अस धन समय बोहाहय, हरिया भूमि बचत ते नाश.”
अंकालू के क्रोध भड़क गे- “”बिन कारण जावत हे जान
तंय आगी मं घिव डारत हस, ताकि होंव मंय सत्यानाश.
चहत हवस-मंय रहंव कलेचुप, सोनवा के झन होय विरोध
पर अन्याय के पक्ष लेत हस, कार देत हस गलत सलाह ?”
कथय फकीरा -“”मोर तर्क सुन-हम जनता मन हन असमर्थ
सोनसाय ला गारी देवन, या छीनन हम ओकर भूमि.
पर कल्पना मं सार्थक एहर, पर प्रत्यक्ष असम्भव बात
सोनसाय हे पुरे गोसंइया, ओकर कोन हा करे बिगाड़ !
सोनू ले तंय उबर आय हस, वास्तव होय नेक अस काम
खुद ला लाय सुरक्षित हस तंय, एहर आय बड़े उपलब्धि.”
फिक्र हटा अंकालू कहिथय -“”तोर बात जस करुहा लीम
यद्यपि छेद करिस कांटा बन, पर पथ ला देखाय तंय ठीक.”
एमन अपन राह ला पकड़िन, सोनू हा मचात हे लूट
पर, पर ला घालत हे तेला, जेवत उम्र तेन नइ याद.
सोनसाय के बुद्धि हे चंचल, चिंतन करत रथय दिन रात-
अपन डहर आकर्षित होये, चलंव कते शतरंज के चाल ?
सब ग्रामीण ला बला के बोलिस -“”मंय हा जोंगे हंव शुभ काम
अपन गांव सुन्तापुर मं मंय, चहत बलाय सात विद्वान.
पर कठिनाई आत इहिच बस-परत खूब अक खर्च के मार
बोझ उठाय तुमन यदि राजू, तुम्हर साथ मंय तक तैयार.”
ग्रामीण झड़ी हर्ष कर बोलिस -“”कहत तेन अति उत्तम गोठ
तोर तोलगी सदा धरे हन, तब अब घलो होय नइ घात.
जतका व्यय हमला कबूल-पर, भेज निमंत्रण-ज्ञानिक लान
गूढ़ गोठअमरे उत्साहित, सरहा तन के हो कल्याण.”
किहिस लतेल -“”आन हम मेचका, कहूं आन ना कहुं तन जान
होय ज्ञान विज्ञान बात नइ, हम रहिथन सत्संग ले दूर.
तंय विद्वान बला ले निश्चय, हम स्वागत बर हन तैयार
मात्र तोर पर बोझ आय नइ, सब पर परत खर्च के भार.”
एेंच पैंच ले दूर गंवइहा, समझिन नइ सोनू के चाल
जइसे सिधवी मछरी जाथय-जान गंवाय जउन तन जाल.
सब ग्रामीण ला लहुटा सोनू, भोजन कर-कुछ लीस अराम
एकर बाद खेत बल जावत, किंजरे असन भरत डग लाम.
कुछ ओहिले अउ गिस तब मिलगे, सुद्धू बुता करत खुद खेत
सोनू हा एल्हत ओतिर थम -“”कार कमावत बिधुन बिचेत !
परे डरे बेर्रा लइका बर, फोकट बोहा डरत श्रम बूंद
तोर लहू नइ आय गरीबा, तभो सुतत नइ आंखी मूंद ?
छोड़ गरीबा के सेवा ला, देख अपन भर स्वार्थ अराम
ओंड़ा आत ले जेवन ला कर, नाक बजा के नींद ला भांज.”
सुद्धू चक ले बात ला काटिस -“”यदपि गरीबा मम नइ पुत्र
ओकर पर सदभाव रखत हंव, उहू आय मानव के वंश.
पर के तन मं लहू हा दउड़त, चलत गरीबा के तन खून
लेकिन तंय हा भेद करत हस, क्षुद्र विचार करिच दिस दंग.
कड़कड़ महिनत कर के पाथंव, पपिया पेट मं नाय अनाज
अगर तोर अस लहू चुसइया, तब कहुं भोग सकत सुख राज !”
सोनू किहिस – “”कर्म ला भोगत, सदा रखत हस क्षुद्र विचार
तब तंय पूंजी जोड़ पास नइ, रहत अभाव पात दुख खूब.”
सुद्धू किहिस -“”अगर मंय घालुक, लूट मचातेंव सब अतराप
तोर असन मंय झिंकतेंव धरती, ब्याज मं रुपिया लेतेंव खूब.
तभे तोर अतका मंय पुंजलग, मोर पास मं वैभव पूर्ण
जिनिस उड़ातेंव आनी बानी, पर ला टुहू देखातेंव खूब.”
सोनसाय ला बानी चढ़गे, ओहर बोलिस कर के क्रोध-
“”छोटे नदिया खल बहुराई, तइसे करत टेचरहा गोठ.
काकर संग कइसे गोठियाना, हमर पांव ला पर के सीख
यदि उजड्ड आदत ला रखबे, गिर के रहिबे मुड़ के भार.
तोर अन्जरी बात बाण घुस, अंतस ह्मदय मं कर दिस घाव
उही बखत ए ऐब मिटाही, हेर लुहूं जब एकर दांव.”
सुद्धू कथय – “”खूब जानत हंव, तंय ले सकत हवस प्रतिशोध
अउ तंय निश्चय बल्दा लेबे, जब तंय पाबे ओकर टेम.
मगर मोर सच गोठ घलो सुन, मृत्यु के ताकत ला पहिचान
करत प्रदर्शन विद्धता के अउ, धन के करबे खूब घमंड.
पर सब चाल हो जाहय असफल, जहां मृत्यु ले जाहय झींक
करत घमंड देखावत ताकत, जमों शक्ति के चरपट नाश.
याने मंय कहना चाहत हंव-जलगस तन मं तलफत प्राण
हल्का बात मुंह ले झन हेरो, झन छीनव पर के अधिकार.
हवय गरीबा हिनहर लड़का, ओकर साथ घृणा झन होय
ओकर पर तंय स्नेह प्यार कर, सब झन पर रख निश्छल भाव.”
सोनू मण्डल रकमका बढ़गे, बंगी पढ़त लेत मरजाद
सुद्धू कान धरत नइ एको, काबर व्यर्थ बुद्धि बर्बाद !
आत गरीबा के सुरता अब, भूल पात नइ ओकर याद
सुद्धू लहुटत हवय अपन घर, शेष काम के अंतिम बाद.
दरवाजच तिर मिलिस गरीबा, जेहर चिखला देह लगाय
सदबदाय माटिच माटी मं, मात्र आंख भर हा बच पाय.
सुद्धू किहिस -“”अरे तुलमुलहा, काबर चिखला ला चुपरेस –
अगर तोर तबियत हा बिगड़त, कुछ उवाट कतका अस क्लेश ?”
पिता-डांट सुन कथय गरीबा, थोरिक गुन ठुड्डी धर हाथ-
“”लेलगा, मंय तिथला नइ बोथे, मंय लदाय थाबुन ममहात.
अबल तमइया थते ददा ते, थेवा तरे पलन हे आद
बाथी ततनी थवा पेत भल, नींद थुताहंव लोली दात.”
तोतरावत चटरु हा खींचिस, एकदम जोर बाप के कान
सुद्धू हंस के पुत्र ला लानिस, चढ़ा खांध पर भितर मकान.
ऊपर मटकत कथय गरीबा -“”मंय थब धन ले हंव बलवान
दर हत्थी आ दही इही तिल, मुटका माल के लेहूं प्लान.
पहलवान के दाप दलीबा, तेला दानत हल एत दांव
मोल बात ला लबला थमझत, बता थकत मंय तौथल दांव.”
तोतरी बात ला सुनथय सुद्धू, लगत सुहावन ह्मदय उमंग
करु होत हे साग करेला, मगर खाय मं हे स्वादिष्ट.
“”तोर लबारी बात सुने बर, मात्र एक सुद्धू हा पास
कूंद कूंद गोठियात सुवाअस, खांद ले उतरो चल बदमाश.”
अतका कहि सुद्धू चटरु के, रगड़ के धोइस तन के मैल
बाद पेज धर कोठा घुसरिस, जिंहा बंधाय कृषक धन बैल.
मन प्रसन्न मदमस्त गरीबा किंजरत एती ओती ।
तभे अचानक आंखी जमगे चांटी के बिल कोती ।।
चांटी मन के रेम लगे हे, बिल अंदर ले बाहिर आत
उही पास जा टुडुंग गरीबा, थपड़ी झड़ बड़ मजा उड़ात.
कतको बुबू ला धर तुलमुलहा, मारिस जहां चपक पुटपूट
चांटी-झुण्ड घलो जुरिया के, लइका ला चाबिस चुट चूट.
अब कलबला गरीबा रोवत, चिल्ला चिल्ला पटकत गोड़
आखिर डर के पल्ला भागत, चांटी अरि के ठंव ला छोड़.
झप आ सुद्धू देत ठोलना -“”काबर भगत छोड़ मैदान
तंय हस सब झन ले बलशाली, दिखा अपन अब ताकत शान !
अरे उदबिरिस, करत टिमाली, कष्ट मिलय तस धरथस काम
मानस नइ सियान के बरजइ, अपन हाथ लावत तकलीफ”
सुनत गरीबा मुंहबोक्का बन, समझ गे तइसे मुड़ी हलात
सद्धू हा कोरा पर बइठा, गिनत गरीबा के दूध-दांत.
पिता के मन ला हरियर राखत, लइका खेल कूद कर नाच
फुरनावत गरीबा हा जइसे, गिनती एक दो तीन चार पांच.
पढ़े लइक जब होय गरीबा, विद्या मन्दिर लेगत बाप
एकर नाम उहां लिखवाथय, शिक्षक मिलतू ला कहि बोल.
मिलतू हा सुद्धू ला बोलिस -“”तंय नइ करेस पढ़ाई ।
मगर गरीबा ला शिक्षित कर ओकर होय भलाई ।।
मगर गरीबा उहां रुकत नइ, बस्ता धर-धर उड़े विचार
मगर पढ़े बर परिस बिलमना, मिलतू के सुन डांट दुलार.
अपन बुता मं सदा उपस्थित, करतब नइ त्यागय आदित्य
उसने शाला पहुंच गरीबा, पावत ज्ञान चिभिक कर नित्य.
अउ सहपाठी टुरा तिंकर संग, कभू लड़ई झगरा-कभु मेल
फुरसुद बखत अमर के खेलत, गंवई मं जइसन चलथय खेल.
घर मं बइठे लिखत पहाड़ा, आज आय छुट्टी इतवार
तभे मित्र मन तीर बला लिन, जोर जोर से कुहकी मार.
मटका आंख गरीबा पूछिस -“”मितवा, तुम्मन कार बलाय-
मोर बिगर का काम अटकगे, पिया जुवाप कान मं मोर ?”
नांगर देखा सनम हा बोलिस -“”इही तिर बिलम के झन एल
आज पाय अवकाश सुघर अक, चल खेलन नांगर के खेल.
बुजरुक मन गुरुमंत्र पियाथंय-खेल ले होथय देह बलिष्ठ
तब चलना हम दौड़ मचाबो, बुजरुक के मानन उपदेश.”
सनम-गरीबा जुंड़ा मं फंदगें, धर के मुठिया सुखी दबात
खोर बीच हरिया धर जोंतत, नांगर हा आंतर नइ जात.
बरसा हा कुचरे रनझाझर, खोर बोहाय छलाछल नीर
चिखला सदबदाय धरती भर, तभे चलत नांगर के खेल.
सुखी हंकालत डिर तोतो कहि, लउड़ी उबा-बढ़ावत गोड़
बइला मन बल भर हल झींकत, भागत कहां काम ला छोड़ !
ओतन सुद्धू हा कंस खोजत-पुत्र गरीबा हा कंह गीस ?
बालक मन तिर पहुंच के देखत, एमन खेल करत सब भूल.
कथय गरीबा ला सुद्धू हा- “”चल घर सुस्ता-जोंतई ला त्याग
थोरिक बाद भले अउ भिड़बे, तब तक ले नइ बिगड़य पाग.
तंय हा अड़बड़ समझदार हस, पढ़लिख के बन जा हुसियार
मगर आज तोला का होगिस-नांगर झींकत बन के बैल !
तंय महिनत नंगत जोंगत हस, पीरा भर जाहय सब देह
इहां के टंटा टोर के घर चल, सोसन भर खा के कर मौज.”
सुद्धू हा लुभात हे कतको, करत गरीबा हा इंकार-
“”अभी इहां ले टरना मुश्किल, अंड़े हवय नंगत अक काम.
अगर काम ला छोड़ के भगिहंव, मोर नाम होही बदनाम
मंय कमचोर हो जाहंव सब ले, बिगड़ जहय जोंते के पाग.”
सुद्धू हा कतको भुरियाइस, मगर गरीबा चेत नइ देत
सब उपाय ला हार बाप हा, अपन पुत्र ला लालच देत-
“”ओरझटिया-घेक्खर नइ मानस, तब तसमई खांहव मंय एक
खतम-बाद तंय रंच पास नइ, रेंद मचाबे करके टेक.
कहना मान-उदेली मत कर, वरना पछताबे तंय बाद
अपन मित्र ला घलो साथ धर, गुरतुर जिनिस खाव भरपेट.”
जुंड़ा ला बोहि के कथय गरीबा -“”कंझट झन कर-चल तो भाग
हमला सनम खाय बर देहय, पेट फुटत तक बासी साग.
मिट्ठी तसमई तंय पकाय हस, पर मंय मीठ ले भागत दूर
एकर खाय रोग हा बढ़थय-पेट मं होथय लम्बा क्रीम”
सनम संरोटा झिंकिस -“”काम कर तिनों हमर घर जाबो।
बासी अउर चरोटा भाजी, खूब रबाचब खाबो ।।
सुद्धू बुड़बुड़ात वापिस गिस, लइका मन के सुम्मत जांच
लइका मन ले सब झन हारिन, एकर कहां चलय टिंगपांच !
बाधा बिगर-निफिकरी बन अब, नांगर चला-उकालत खोर
भूख लगत अऊ देह पिरावत, तभो उदबिरिस मारत जोर.
कुछ पश्चात सनम लरघा गे, सरकत इसने पेल ढपेल
तभे गरीबा अगुवाये बर, लउहा रेंगिस जुंड़ा उझेल.
जब पंचघुंच्चा घुंचिस सनम तंह, इरता कोचकिस जोर सुखी
करला के सन्नात सनम हा -“”चक चक – चिक चिक – चुकी चुकी.
बउग लगा के मंय रेंगत हंव, तेला ताकत भर हकराय
शत्रु गरीबा ला सारत हस, लेवत हवस तउन अन्याय.”
यदपि सनम हा सुखी ला बोलिस, मगर गरीबा पर गे आंच
अपन पक्ष ला पोख करे बर, हेरत हवय सनम के कांच-
“”डायल, स्वयं धुरा पटकत हस, अउ दूसर पर डारत दोष
कायर ला अब कोन खेलाहय, सिरी गिराय-मरे अफसोस.
सुखी कोचक के सीख देत हे, तिंही खेल ला करत खराब
वास्तव मं तंय खूब आलसी, काबर करन तोर संग खेल !”
जहां गरीबा अतका कहिथय, जुंड़ा पटक के सनम जोसात –
“”मोला तिरयावत बिन कारण, तुम्हर पेट के अंदर दांत.
अगर शत्रुता हवय मोर संग, वापिस कर दव नांगर मोर
अन के साथ खेल लेबो हम, तुम्हर गरज करना अब व्यर्थ.”
जहां सनम हा सेखी मारिस, सुखी – गरीबा करथंय क्रोध
मजा चखाये बर सुंट बंध गें, एकदम डंटिन सनम के पास.
सुखी – गरीबा मन चेचकारिन, सनम भूमि गिर गीस फदाक
फफक-फफक ओकर रोना सुन, अैस फकीरा दउड़ तड़ाक.
उहां के दृष्य फकीरा देखिस, तुरुत समझगे कारण साफ
सुखी – गरीबा ला दमकावत, सनम ला समझत हे निर्दोष-
“”तुम बाती मन ला पूछत हंव, तुम्मन कब के संडा आव
अभिच जाम के खड़ा होय पर, पुरखा तक हे हेरत दांव.
खयटहा मन के तुम लइका अव, जानत तुम्हर ददा के हाल
ओमन सदा सबो संग झगरिन, फिर तुम कहां ले करहू प्रेम ?
अब कभु मोर सनम संग लड़िहव, रोटी अस पो देहंव गाल
कनबुच्ची धर के केंदराहंव, भले होय तकरार-बवाल.”
सुन चिरबोर पहुंचगे सुद्धू, एक बड़े लउठी धर हाथ
तभे गरीबा पास मं अमरिस, लिखरी लिखत झूठ ला मेल-
“”आय फकीरा गांव के बुजरुक, पंचायत मं निर्णय देत
मगर आज खुद गलत राह पर, ओहर करिस गजब अन्याय.
ओहर मोला थपरा मारिस, अंइठिस कान-पटक दिस दोंय
यदि मंय कुछ असत्य बोलत हंव, वास्तव गोठ सुखी ला पूछ.”
जहां गरीबा ढाढ़ा कूटिस, सुद्धू ला चढ़गे कंस जोश
टिंया के मितानी टोरत अउ, जोमिया लड़त फकीरा साथ-
“”तंय बुढ़ुवा टूरा संग लड़थस, थोरको असन भला कर शर्म
तोर टुरा अंधेर लड़ंका, तभो संरोटा लेवत खूब !
मोर गरीबा ले अब लड़बे, या अटपट अस भाखा टांठ
पहटा टोर दुहूं मंय नसना, देव ला सोझियावत पिट सांट.”
सुद्धू हा जहां अतका बोलिस, चढ़िस फकीरा पर बिख-खार
मिरचा होय बड़े के छोटे, मगर खाय मं चढ़थय झार.
ओहिले कूद फकीरा बखलत-“”मोर मरइया होथस कोन !
तोर गरीबा खयटहा बिक्कट, मोर मयारु सनम हा सोन.
दही जमे नइ मोर हाथ मं, तोर मार खाहंव चुपचाप
अगर अपन पत चहत बचाना, मुंह करिया कर-घर पग नाप.
लड़त फकीरा अउ सुद्धू मन, बायबिरिंग हो मुंह फरकात
टूरा मन तक ठाड़बाय नइ, लड़ई बढ़य कहि कुबल लुहात.
केड़ू दुनों पक्ष ला बोलिस – “”करो समाप्त लड़ाई ।
बच्चा झगड़ के फिर मिल जाथंय जइसे पाट के भाई ।।
जब ग्रामीण बीच मं अंड़ गिन, शांति रखे बर करिन बचाव
तभो दुनों झन क्रोध मं हंफरत, एक-दूसर ला देखत लाल.
अपन गरीबा ला हेचकारत, सुद्धू लेगत हे घर कोत
लहुट फकीरा सनम ला देखत, कहत गरीबा ला कंस डांट-
“”मंय हा तोला सीख देत हंव, यदि खेले बर तोर विचार
तंय “ढारा’ चल खेल सकत हस, उहां के मनखे सरल उदार.
मगर फकीरा-सनम शत्रु अस, मन मं रखत कपट के दांत
उनकर छंइहा कभू खूंद झन, उंकर ले दुरिहा रहि प्रण ठान.”
सनम ला फकीरा चेचकारत -“”बड़ उठमिलवा बेटा-बाप
उंकर साथ तंय अड्डी रहिबे, मढ़त हमर पर अटपट दोष.”
बनिन हेरौठा अउ घर लहुटिन, कुरबुरात मुंह करु बनात
सुद्धू घर आइस तब मिलगे, बिसरु अपन पुत्र के साथ.
बिसरु अपन पुत्र ला देखत, कहिथय -“”एकर दसरु नाम
आय गरीबा-संग खेले बर, फूल बदे बर-बदे मितान.”
सुद्धू, दसरु के अंगरी धर, अंदर घर लेगिस तत्काल
बिसरु ला खटिया पर बइठा, अब सुनात मितरंउधी हाल-
“”काय बतांव अपन लेड़गई ला, मोला लगत घलो बड़ लाज
मंय बिपताय बाल झगरा में, फोकट नाश होत दिन आज.”
बिसरु कथय- “”तोर बाबू हा, अड़बड़ कंइया हवय मितान
चिभिक लगा-कहुं बने पढ़ाबे, बनिहय समझदार गुणवान.”
सुद्धू बिसरु गोठमं भूलेे, बालक मन के बिधड़क हाल
आपुस मं टक बांध के देखत, होवत ललक करे बर मेल.
अपन जंहुरिया जान गरीबा, तुरुत गीस दसरु के पास
ओकर “बुगई’ ला खन दिस चुट चुट, पर तन देखत खुल खुल हांस.
दसरु घलो कलबला गे तंह, खींचिस जोर गरीबा के बाल
बिन कारण झगरा जर बढ़गे, होवत दुनों मध्य चिरबोर.
इंकर तीर सुद्धू दउड़िस अउ, शांत करिस-कर बीच बचाव
लान खजानी दीस खाय बर, तंह लइका खावत बड़ चाव.
दसरु कहत गरीबा ला अब -“”चल दिन कहां तोर सब मित्र
चलना उंकर साथ खेलिन्गे, कउनो जाय हार या जीत.”
“”इहां मोर कतको संगवारी, जेमन नइ बोलंय नकसेट
सुखी सनम मन मोर मित्र प्रिय, चल अउ उंकर साथ कर भेंट.”
बोल गरीबा हा दसरु ला, संग लेगिस परिचय करवाय
सुखी सनम मिलगें आगुच मं, खेल करत “लउठी के खेल’
कथय गरीबा – “”सुनव मोर तन, आय एक झन नवा मितान
उहू खेलना चहत तुम्हर संग, का विचार तुम उत्तर देव ?”
“”एकर बर तंय काबर पूछत- हमला कभू कहां इंकार
फोकट समय गंवावव झन तुम, पागी कंस झप होव तियार.”
सनम के कहना सुनिस गरीबा, लउठी लानिस तुरुत तपास
अब चारों साथी मिल खेलत, लेवत नइ एको कन सांस.
लउठी ला ऊपर उठात अउ, चिखला मं धंसात कर शक्ति
लउठी ला लउठी पर पीटत, अमर सफलता होत प्रसन्न.
सुद्धू लइका मन ला खोजत, पर नइ पावत-निकलत तेल
आखिर उंकर तीर जा देखिस-उंकर जमे हे “लउठी खेल’
लउठी उबा घुमैस गरीबा, उदुप घटिस घटना ए बीच-
लउठी बिछल परिस सुद्धू ला, कंझा बइठिस आंख ला मूंद.
बाद चेत लहुटिस तब भड़कत -“”टूरा, तुम मांई बइमान
बुजरुक मन के प्रेम ला टोरवा, तुम खेलत बन एक ठन प्राण.
मंय लइका के लड़ई मं पर के, ठगा गेंव-बन गेंव नदान
मित्र फकीरा ला बक डारेंव, करेंव कुजानिक तेकर लाज.
मित्र फकीरा ला बनाय अरि, आंख मिलाय शक्ति तक खत्म
जउन कुजानिक आज करे हंव, ओकर सजा मार मंय खाय.”
दसरु अउर गरीबा ला धर, लानिस तुरते ताही ।
बच्चा मन नइ जाना चाहत पर नइ बोलत नाही ।।
बिसरु तिर मं सुद्धू केंघरिस -“”का फोरंव मंय अपन बिखेद-
टुरा गरीबा खूब निघरघट, करथय पूर्ण अपन भर रेंद.
नेक सीख ला बिजरा देथय, वाजिब काम ले भागत दूर
एकर कारण मंय घसटाथंव, पुत्र के कारन मयं बदनाम.”
सुद्धू मर मर बिपत ला रोवत, ताकि सहानुभूति मिल जाय
पर बिसरु हा पक्ष लेत नइ, अउ ऊपर डारत हे दोष-
“”बच्चा छल प्रंपच ले दुरिहा, झगरा कर-फिर बनत मितान
इनकर बीच परे तंय काबर, जबकिन तंय हुसनाक सियान.”
गोठ लमावत सोच के बिसरु, बात सुहावन फेंकिस जल्द-
“”मितवा, व्यर्थ फिक्र झन कर तंय, तोर पुत्र के नेक सुभाव.
अच्छा, अब हमला जावन दे, गोटकारी मं कटगे आज
अपन बुता मं मंय पछुवावत, घर मं पहुंच पुरोहंव काम.”
सुद्धू कथय -“”तिंहिच खरथरिहा, तोर बिगर अरझे सब काम
गांव करेला जाबे कल दिन, आज इहां भर कर विश्राम.
जान देंव नइ- रुकना परिहय, तोर गांव हम आबो दौड़
अगर पेल तुम रद्दा नापत, हमर तोर मं लड़ई अवश्य.”
बिसरु खुलखुल हंस के कहिथय-“”ले भई, हम बिलमत ए धाम
मगर आज का जिनिस खवाबे, फोर भला तो ओकर नाम ?”
“”हमर इहां चांउर पिसान हे, हवय तेल गुड़ शक्कर नून
मिट्ठी-नुनछुर सब बन सकही, जउन विचार पेट भर खाव.
सगा जेवाय जिनिस हे छकबक, चुनुन चुनुन हम चिला बनाब
मांईपीला बइठ एक संग, स्वाद लगा भर पेट उड़ाब.”
कहि सुद्धू हा तुरते घोरिस-एक सइकमा असन पिसान
आगी बार तवा रख चूल्हा, डारिस तेल घोराय पिसान.
सुद्धू हा चीला बनात हे, पर चीला हा बिगड़त खूब
ओहर तवा मं चिपके जावत, या फिर जावत पुटपुट टूट.
इही बीच मं अैस सुकलिया, ओहर हंसिस हाल ला देख
कहिथय -“”तंय चीला बनात हस-गदकच्चा अधपके पिसान.
एला यदि लइका मन जेहंय, ओमन ला करिहय नुकसान
मोला तंय चीला बनान दे, मंय हा चुरो सकत हंव ठीक.”
सुद्धू कथय -“”कहत हस ठंउका-जेवन रंधई कला ए जान
जमों व्यक्ति हा निपुण होय नइ, सर मं सती होत हे एक.
खपरा रोटी-गांकर सेंकत, चीला बनई कठिन हे काम
तंय हा चीला आज बना दे, सीख जहंव मंय ओला देख.”
चीला ला पलटात सुकलिया, सुद्धू बिसरु बात चलात
सुम्मत बंधत गरीबा दसरु – चील अस किंजरत चीला-पास.
कथय गरीबा -“”हमन खेलबो-सगा परोसी उत्तम खेल
हमला तो बस चीला चहिये, ओकर बिन नइ आय अनंद.”
कथय सुकलिया -“”धैर्य रखव कुछ, मंय चीला बनात हंव जल्द
एक साथ तुम सब झन बइठव, तंहने जेव लगा के स्वाद.”
भुलवारत हे खूब सुकलिया, तुलमुलहा मन नइ थिरथार
केंदरावत तब दंदर जात हे-बड़ खिसियात चिला-रखवार.
परे हवय चितखान सुकलिया, ओकर ध्यान तवा तन गीस
तिही मध्य दसरु चीला धर, पल्ला भागिस बिगर लगाम.
ओकर तोलगी धरिस गरीबा, तुर तुर तुर तुर अति उत्साह
पुछी चाब दउड़त हे जइसे-कातिक चल के अघ्घन माह.
ओमन दुसरा खंड़ मं पहुंचिन, कथय गरीबा -“”तोर मं फूर्ति
मंय हा जोंगत रेहेंव बहुत क्षण, पर तंय चीला ला छिन लेस.”
दसरु कथय- “”आज नइ खावन, कल बर लुका के चुप रख देत
जब एको झन तिर नइ रहिहंय, हम तुम दुनों झड़कबो बांट.”
ओमन चीला लुका दीन खब, तभे सुकलिया दीस अवाज-
“”चीला चोर कहां हो तुम्मन, मोर पास झप दउड़त आव.
सब चीला मंय बना डरे हंव, तुम्मन पहुंच के जेवन लेव
करहू देर जिनिस ले वंचित, भूख मरत पछताहव खूब.”
लइका मन आपुस मं बोलिन- “”काबर करन टेम ला नाश
अगर बेर- खा लिहीं हुड़म्मा, फिर चुचुवाना परिहय बाद”
सुम्मत बांध-बुंधी के आइन, दीस सुकिलया जेवन खाय
कहिथय- “”मंय वापिस जावत हंव, तुम खा लेव बचत ला हेर.
बिसरु कथय- “”तंहू भोजन कर, तंय चिला बनाय कर यत्न
जब तंय हा मिहनत बजाय हस, जिनिस खाय बर तक हक तोर.”
किहिस सुकलिया- “”मोला खीचिंस- बाल गरीबा के इस्नेह
एकर साथ भेंट जब करथवं, मोर ह्मदय पाथय संतुष्टि.
एक काम अउ बढ़िया होइस- दसरु संग होगिस मिल भेंट
ओहर निश्छल चंचल लइका, सितरा जुड़ा दीस मन मोर.”
गीस सुकलिया अपने घर तन, टुरा गफेलत अउ अउ मांग
तनगे पेट गोल कोंहड़ा अस, तंहने उठिन खवई ला छोड़.
बोलिन- “”कुछुच चीज नइ चहिये अब तो बुतगे हाही।
नंगत लगत उंघास हमन ला दसना खटिया चाही।।
ठंउका में लइका मन झुमरत, सुद्धू दउड़ बिछादिस खाट
उठा सुतावत भर मं भइगे- दूनों झन के आंख हा बंद.
दुनों टुरा मन एकमई ढलगें, उंकर भयंकर घटकत नाक
सुद्धू बिसरु हर्षित होवत, लइकुसहा के मुंह ला देख.
बुजरुक मन तक सुते चहत हें, आंख मूंद के करत प्रयत्न
पर बालक के कंझट कारण, आवत नींद तेन भग जात.
बिसरु टेम कटे बर बोलत- “”तोर कष्ट ले होवत सोग
घर के सरी बुता निपटाथस, तिहिंच एक झन दुख ला भोग.
तेकर ले सलाह मंय देवत, तिरिया बना लान ले खोज
ओकर आय ले दुख हा कमसल, कनिहा नवत तेन हा सोज”
“”भितरंउधी हे आस अतिक अस- बढ़य गरीबा करंव बिहाव
ओकर भलले मोर घलो भल, मात्र पुत्र हा लिही हियाव.
एक रहस्य पुनः फोरत हंव- आय गरीबा हिनहर फूल
ओला मंय गुणवान बनाहंव, ताकि भविष्य प्रकाशित होय”
कहि के सुद्धू आंख ला मूंदत, बिसरु तक सोवत चुपचाप
रतिहा हाजिर काम करे बर, लेत अराम गांव अतराप.
खोर गली मन शांत तिही बिच, दौड़ो दौड़ो चलिस अवाज
ग्राम निवासी झकनका उठगें, अभिन बिगड़गे काकर काम?
सुद्धू बिसरु आरो ओरखिन- सोनू घर तन खदबद होत
बेंस लगा दूनों झन तरकिन, मनसे दल जावत जे कोत.
सोनसाय के घर मं पहुंचिन, उंहा लगे हे गंजमंज भीड़
सब के मुड़ पर प्रश्न के मोटरी, जमों चहत हें सही जुवाप.
सुद्धू पूछिस अंकालू ला- “”तंय हा काबर दउड़ के आय
मनसे भीड़ करत हे कलबल, कुछ तो कारण ला कहि साफ?”
अंकालू छरकिस- “”तंय सच सुन- तोर असन मंय तक अनजान
जोरहा चिहुर कान मं अमरिस, तंहने इंहा दउड़ के आय.”
किहिस परस- “”तुम धीरज राखव, सोनू फुरिया दिही रहस्य
कार रातकुन हांका पारिस, जनता ला का वजह बलैस!”
आखिर सोनसाय हा बोलिस, कलबिल भीड़ के चिल्लई दाब-
“”कान खोल के जम्मों सुन लव, मंय फोरत हंव घटना सत्य.
तुम्मन तिजऊ ला टकटक जानत, दिखब मं साऊ गऊ इंसान
वास्तव खतरनाक अपराधी, जिनिस चोराय घुसिस घर मोर.
एहर आलमारी ला टोरिस, उंहा के हेरिस रुपिया सोन
तभे उदुप मंय पहुंच गेंव अउ, रंगे हाथ खब पकड़िच लेंव.
मंय महिनत कर धन जोड़े हंव, सदा रखे हंव अपन इमान
तभे तिजऊ हा भाग सकिस नइ, रंगे हाथ खब पकड़ा गीस.
एकर कर रुपिया-आभूषण, करो पंच मन झपकुन जप्त
तिजऊ के जुर्म क्षमा-लाइक नइ, एला दण्ड देव सब सोच.”
घंसिया जिनिस ला झटके लेथय , सोनसाय के करिस सुपुर्द
किहिस तिजऊ ला- “तंय चोरहा अस, सब अपराध प्रमाणित होय.
सोचे रेहेस- धनी मंय बनिहंव, कंगला के कंगला रहि गेस
सोचेस- मंय ओंटइट ले खाहंव, पर व्यापत हे सप-सप भूख.
सत्य बिखेद फोर सब-सम्मुख, सोनू के घर घुस गे कार
सिधवा अस-कानून ला डरथस, पर का वजह करे अपराध ? ”
तिजऊ जुरुम फट ला इन्कारिस, “”कोन कथय मंय हा अंव चोर
सोनसाय खुद गलत राह पर, डारत हवय मोर पर दोष.”
सब ग्रामीण क्रोध भर जाथंय, परस हा कई थपरा रचकैस
भड़किस -“”तंय हा स्वयं चोर हस, कोतवाल ला डांटत खूब.
तोर हाथ ले जप्त होय धन, तब ले करत हवस इन्कार
सब अपराध हुंकारु भर दे, वरना तंय खाबे अउ मार.”
आखिर तिजऊ सतम ला उछरिस- “”पहिली मोर पास धन-भूमि
याने मंय हा अतका पुंजलग, चलय सुचारु मोर परिवार.
मोर पास जे मंगय सहायता, मंय हरहिंछा मदद ला देंव
सब के भार लेंव धारन अस, सब अतराप प्रतिष्ठा मोर.
इही बीच होगिस एक गलती, सोनू ला बनाय मंय मित्र
“महाप्रसाद’ बदेंव ओकर संग, दू ठन जीव – एक ठन प्राण.
ओहर शुुरु करिस लूटे बर, अपन चई भर लिस धन-भूमि
सोनसाय हा कंगला कर दिस, मंय बनगेंव हंसिया बनिहार.
हवय अमोल बिजा एक दाना, पोट-पोट भूख मरत परिवार
सोनसाय – तिर ऋण मांंगेव मंय, पर लहुटा दिस खाली हाथ.
मोला प्राण बचाय रिहिस हे, तब चोराय बर निर्णय लेंव
आज अनर्थ करे हंव मंय हा, सोनसाय हा जिम्मेदार.
सोनसाय मण्डल गरकट्टा, जे करिहय एकर वि•ाास
मोर असन कंस धोखा खाहय, अपन हाथ खुद सत्यानाश.”
तिजऊ के अन्जरी गोठ ला सुनते, सोनसाय हा ललिया गीस-
“”वाह रे चोरहा, गलत करे खुद, दोष ला डारत हस मुड़ मोर.
पर ला सदा भलाई बांटेव, नित बांटे हंव नेक सलाह
खुद ला तंय भुखमर्रा कहते, तोला मिलतिस मदद अवश्य.
मगर साफ नइ नीयत- बूता, सदा चले हस राह अनर्थ
उही पुराना ढचरा कारण, आज घलो करे हस अपराध”
सोनसाय बैठक ला बोलिस- “”भाई बहिनी, तुम सुन लेव
तुम्मन सत्य तथ्य ले वाकिफ, तिजऊ आय बड़ घालुक चोर.
जमों जुरुम ला खुद स्वीकारिस, अब तुम एकर निर्णय देव
मोर सलाह हवय बस अतका, कड़ा दण्ड तुम एला देव.
एकर भरभस टूट जाय खब, गलत राह रेंगय झन फेर
पर मन घलो सीख ला पावंय, ओगन रेंगय अपन सुधार.
मोर बोल कांटा अस चुभथय, मगर गांव के होत सुधार
शल्य चिकित्सक तन ला काटत, पर ओहर बचात हे जान”
घंसिया किहिस- “”नेक बोले हस, तिजऊ चोर पर हे सब दोष
ओकर गल्ती क्षमा लइक नइ, निश्चय मिलय कड़ा अस दण्ड”
घंसिया हा तंह तिजऊ ला बोलिस- “”सोनू पर लांछन झन डार
तोर दोष हा होय प्रमाणित, तब निर्णय ला चुप सुन लेव-
लान पांच Ïक्वटल अनाज अउ, कड़कड़ रुपिया बीस हजार
तोला समझ महा भुखमर्रा, तरस मरत तब कमती डांड.
हम्मन निर्णय करे हवन अभि, यदि ओकर होवत हिनमान
तंय हा उचुकबुड़ा मं परबे, लासा डबक बेचा जहि रांड़”
सुन के तिजऊ सुकुड़दुम होवत, आज होय मुड़ बोज नियाव
ओकर जीयत खटिया उसलत, बीच सिंधु मं बूड़त नाव.
बपुरा तिजऊ मुड़ी गड़िया लिस, हेरत मुंह ले करुण अवाज-
“”दण्ड पटाय खात हंव लंगड़ी, मोर पास नइ रुपिया अन्न.
मंय भुखमर्रा-कंगला मनसे, पसिया बिगर मरत पोट-पोट
सोनू हा सब धन ला गटकिस, अब मंय पांव कहां ले नोट!”
सुनते परस ततेरत आंखी – “”वह रे चोर – उचक्का ।
स्वयं करे हस काम खोट अउ सोनू पर बदनामी ।।
सोचत हस के आज धवाहंव, पूरा गांव ला मंय भर एक
लेकिन जान हमर सम्मुख में, चल नइ सकय तोर प्रण-टेक”
देख शिकारी हिरण हा कंपसत, पिंजरा अंदर सुवा धंधाय
तिजऊ फंसे बइठक के चंगुल, बात बंद जस मुवा धराय.
सोनसाय हा भीड़ ला बोलिस- “”सुनव गांव के मजुर किसान
तिजऊ बहुत चलवन्ता मनखे, मारत ढचरा गला बचाय.
जे मुजरिम हा चहत बोचकना, कलपत रोथय मुंहू ओथार
प्रस्तुत करथय झूठ गवाही, अपन पक्ष ला करथय ठोस.
न्यायालय दिग्भ्रमित होत हे , मिल जावत मुजरिम ला लाभ
जमों दोष ले मुक्ति मिलत तंह, अलग बइठ के हंसथय खूब.
पांच पंच कुछ दूर जगा हट, सुम्मत बंध के करो विचार-
चोरहा तिजऊ बोचक झन पावय, ओला मिलय सदा बर सीख”
मुटकी हाथ बजा के बोलिस- “”सोनसाय के नेक सलाह
झड़ी-लतेल-परस अउ घंसिया, बनय फकीरा मन हा पंच.
बइठक ले कुछ दूर जांय अउ, आपुस सुंट बंध – करय विचार
तंह निष्पक्ष न्याय ला देवंय, आलोचना होय झन बाद”
पांच पंच बइठक ले उठ गिन, ओमन निकल गीन कुछ दूर
घेरा गोल बना के बइठिन, उहां करत हेंे मंथन खूब.
किहिस लतेल “उमंझ नइ आवत, आखिर हम का करन नियाव
अगर तिजऊ के पक्ष लेत हन, कंगला कहां दे सकही लाभ !
सोनसाय के पक्ष लेत हन, दिही धान – आर्थिक सहयोग
यदि ओकर विरुद्ध हम जावत, निश्चय बाद लिही प्रतिशोध.
हम्मन अपन भलई ला देखन, भले तिजऊ हा बिन्द्राबिनास
पर सोनू ला लाभ देन हम, परलोखिया ला करन प्रसन्न”
कथय फकीरा -“”पंच बने हव, परमे•ार हा बोलत सत्य
लेकिन तुम खुद गलत राह पर, अइसन मं होवत अन्याय.
सोनू मण्डल करिस कुजानिक, तिजऊ के हड़पिस अनधनमाल
रखव सहानुभूति ओकर पर, ताकि भविष्य सुखद बन जाय”
झड़ी हा थोरिक उग्र हो जाथय “”तुम्मन मोर गोठसुन लेव
अपराधी पर दया मरो झन, कभु झन लेव चोर के पक्ष.
अगर तिजऊ पर दया करत हव, करिहय फिर जघन्य अपराध
तेकर ले भरभस टोरे बर, कड़ा दण्ड तुम निश्चय देव”
बइठक-पास पंच मन लहुटिन, तंह घंसिया हा हेरिस बोल-
“”तुम हम पर वि•ाास करे हव, तभे पंच-पद पर बइठाय.
तब फिर हमर फर्ज हे अतका, ककरो पक्ष भूल झन लेन
निर्णय सही-ठीेक हम देवन, न्याय के इज्जत ला रख लेन.
तिजऊ ला पहिली डांड़ करे हन, पर ओहर हिनहर कंगाल
सोनू के घर काम करे खुद, पर नइ मिलय काम के दाम.
तिजऊ के मांईलोगन जग्गी, करय पहटनिन अस कंस काम
ओला श्रम के कीमत मिलिहय, उही भरोसा सब परिवार.
तिजऊ के लइका नाम हे कातिक, जेहर हा अभि पोल्हुवा बाल
काम ले लाइक अड़िल युवक तंह, सोनू के घर बनही भृत्य.
उहू घलो रटाटोर कमाहय, करिहय बुता जमों परिवार
तभे कर्ज ले मुक्त हो सकही, सब अपराधो ले आजाद”
अब लतेल ग्रामीण ला पूछिस, “”करे हवन हम जेन नियाव
ओहर उचित या अनुचित होइस, बिन संकोच कहव तुम साफ”
हुआं-हुआं ग्रामीण करिन अउ, पोंगू घलो समर्थन दीस-
“”सोच-विचार न्याय टोरे हव, होय सुधार नियम कानून.
अब अपराध मं लगगे अंकुश, अपराधी हा पाइस सीख
दार-भांत हा ठीक चुरिस हे, तब हम काबर करन विरोध”
कउनो उफ तक कहन सकत नइ, चलत हवय सोनू के राज
लीम हा आमा राजबजंत्री, तब ले मानत भरे समाज.
सोनू मण्डल तिजऊ ला बोलिस- “”दीन पंच मन निर्णय ठोस
तंय अउ तोर गृहस्थ जमों झन, आज ले बनगेव नौकर मोर.
तुम निर्णय ला स्वीकारत हव, अगर उदेली कहिदो साफ
मगर एक ठन याद ला राखव, बाद मां मत देना कुछ दोष”
तिजऊ कहां कर सकत उदेली, मान लीस पंच के आदेश
बिन कीमत के श्रमिक अमर के, सोनू मुड़ उठात कर गर्व.
सोनसाय ला तिजऊ हा बोलिस- “”पंच के निर्णय हा स्वीकार
लेव मोर ले कठिन परिश्रम, या तुम मारो हर क्षण लात.
लेकिन मोर पुत्र कातिक ला, प्राण बचाय के अवसर देव
मंय हा कष्ट ले मुक्ति पांव नइ, पर कातिक सुख पावय खूब.
एक बिस्कुटक मंहू सुने हंव, समय हा बदलत गति अनुसार
पेड़ मं पहली पतझड़ लगथय, लेकिन बाद नवा नव पान”
भृत्य बने के रश्म पूर्ण तंह, मनखे चिल्लावत भर जोश-
“”होय पंच परमे•ार के जय, सोनसाय के जय-जयकार.”
सब ग्रामीण अपन घर लहुटिन, सुद्धू – बिसरु खुद घर कोत
तिजऊ इंकर तोलगी धर आवत, अपन दर्द ला तरी दबात.
तिजऊ कथय- “”सोनू हा घर लिस, दुख बद ला डारिस मुड़ मोर
अब मर जाना उचित जनावत, मोर भविष्य मं घुप अंधियार.”
गिरिस तिजऊ के सिरी तरी तन, जीवन जिये ले होत हताश
बिसरु हा ओला जियाय बर, लेवत हवय तिजऊ के पक्ष-
“”जन्म ले कोन बनत अपराधी, मगर अभाव ले गलती राह
अगर जरुरत पूर्ण होत तब, कोन चोराये देतिस जान !
यदपि आत्महत्या के करना, निश्चय आय साहसिक कर्म
ह्मदय कठोर – निघरघट मनसे, अपन प्राण हरे बर दमदार.
लेकिन प्रकृति हा जीवन दिस, रउती भर तंय उम्र ला पाल
सुख-दुख, अच्छा-बुरा झेल तंय, निश्चय यहू साहसिक काम.”
सुद्धू कथय- जमों के दुर्गति, बोकरा माने कब तक खैर !
सोनू राखे खोप मोर पर, निश्चय लिही एक दिन दांव.
पर एकर मतलब नइ अइसन, हतोत्साह भर त्यागन जान
अगर हमर सहि सबो सोचिहंय, मरघट मं परिवर्तित वि•ा.
रखना हे आशा भविष्य बर, जिनगी चला फिक्र – गम ठेल
तोर टुरा कातिक अभि नान्हे, बन के युवक दिही सुख खूब”
सुद्धू हा सम्बोधन देवत, तिजऊ ला ओकर घर पहुंचैस
तत्पश्चात अपन घर आथय, बिसरु ला सब व्यथा बतैस-
“”जे वि•ाास करत दूसर पर, ओहर बाद मं धोखा खात
जेन सह्मदय निश्छल मनसे, कपटी ले छल ला अमरात.
सोनसाय अउ तिजऊ दुनों झन एक जान संगवारी ।
पर सोनू हा धन खंइचे बर मितवा संग गद्दारी ।।
सोनू अगर मदद ला मांगय, तिजऊ हा फोकट मं अमराय
मगर तिजऊ के बखत अंड़य तंह, सोनू बाढ़ी-ब्याज लगाय.
सोनू ला मितान समझिस तब, ओकर चई भरिस सब चीज
तिजऊ के अन – धन हा खिरगे तब, वर्तमान हालत हे दीन.
अपन चीज – बस फूंक ललावत, तिजऊ बिचारा सिधवा आज
कतको के हक छिन सोनू हा, मण्डल बनगे गिधवा बाज.
धन ला कउनो पथ ले सकलय, पर ओहर पूंजी धन आय
ओला जउन रपोटत हे कंस, ओकरेच होत प्रतिष्ठा पूछ.
सोनू हवय भ्रष्ट गरकट्टा, पर ओकर तिर धन के शक्ति
तब ओकर तन न्याय हा घूमत, जमों डहर पावत हे जीत.”
सुद्धू हा फिर कहिथय कुछ रुक- “”हम्मन मरन तिजऊ पर सोग
पर जीवन-स्तर सुधरय नइ, दुख हा रहिहय खमिहा गाड़.
सोनसाय के दोष खोजबो, पर धन ला कभु सकय न बांट
मानव सब ले घृणा करत पर, पूंजी पर हरदम आसक्ति.
मानव हा उपदेश ला देथय, साधु- संत जीवन निर्वाह
पर धन-पद-यश-मान पाय बर, मानव करथय सतत प्रयत्न”
बिसरु कहिथय- “”धन के वितरण, संभव दिखत क्रांति के बाद
मोला जप जप नींद जनावत, भेदभाव नइ एकर पास.
नींद हवा पानी प्रकाश पर, सब झन के रहिथय अधिकार
धन जीविका भूमि पर होवय, स्वर्ग कल्पना तब साकार.”
पुट ले मुंदिस दुनों के आंखी, फजर में खुलगे उनकर नींद
रटपट उठिन गरीबा दसरु, करत हवंय चीला के याद.
दसरु कथय- “”रखे हस सुरता, हम्मन कल लुकाय का चीज
तंय खुद ला हुसनाक समझथस, मोर प्रश्न के बता जुवाप ?”
कथय गरीबा- “”मंय जानत हंव, तोर प्रश्न के उत्तर ठीक
तंय चीला के बात करत हस, जेला चुप लुकाय कल ज्वार.
चलना दउड़ दुसर खंड़ जाबो, चीला हेर के लाबो जल्द
हम तुम दुनों पाटभाई अस, जिनिस उड़ाबो आपुस बांट.”
दुनों मितान गीन दुसरा खंड़, चीला ला खोजत हें खूब
पर चीला हा हाथ लगत नइ, लहुट अैैन पालक के पास.
कथय गरीबा हा सुद्धू ला- “”कोन लेग गीस चीला मोर
शंका जावत हवय तोर पर, अगर चोराय सफा तब बोल !
तंय स्वीकार अपन गल्ती ला, हमर पास मं रख दे चीज
वरना फुराजमोखी होहय, सब के पास खोलिहंव पोल.”
सुद्धू कथय – “”अरे एकलौता, मंय नइ जानंव चीला तोर
कहां रखे हस कोन हा लेगिस, जमों बात ले मय अनजान.
कतको मुसुवा बिलई हमर घर, हो सकथय ओमन खा गीन
सत्य बिखेद ज्ञात कर पहिली, तेकर बाद दोष ला डार.
मोर बाप हा चोर ए कहिके, पीट ढिंढोरा झन हर ओर
वरना मंय बदनाम हो जाहंव, मनसे मन हंसिहय घर खोर.
तुमला चहिये खाय खजानी, मंय कर देवत उचित प्रबंध
चुट पुट चना भूंज देवत हंव, खाव दुनों तुम कूद उछंद.”
कोइला आग में चना ला भूंजिस, मुठा मं भर सुद्धू हा दीस
ठठरिंग चाब दुरा मन बोलिन- “”बुढ़ुवा हा बुुद्धू बन गीस.
यद्यपि ददा उमर मं बड़का, पर ओकर तिर हे कम बुद्धि
मिल्खी मारत नवा चाल चल, हम्मन चतुर ला हरवा देन.”
बिसरु हा सब खेल ला देखत, मन मं होवत खुशी-विभोर
सुद्धू ला केंघराय चिढ़ावत, लइका मन के लेवत पक्ष.
बिसरु हा सुद्धू ला बोलिस- “”लइका ला अऊ नानुक बोल
ठंउका मं तंय उंकर ले बड़का, लेकिन ढोल के अन्दर पोल”
सुद्धू कथय- “”रहस्य ला जानत, काबर लेत संरोटा सोग
यदि तंय उकर पक्ष नइ लेबे, बेंदरा पर घोड़ा के रोग”
“”अपन पास हाना गठिया-रख, हम लहुटत हन चीला-चोर
गप्प-गोठमं बिलम गेन हम, अब बिन कारण झन बिल्होर”
अतका कहि बिसरु हा चल दिस, अपन पुत्र दसरु के साथ
बढ़त गरीबा समय के संग मं, पात पिता के मया-दुलार.
एक दिन सुद्धू हा गैय्या ला, घांस खवा-सारत हे पीठ
दूध दुहे के समय अैस तंह, सिझे कसेली ला धर लैस.
अलग जगा बछरु तेला ढिल, लान थन धराथय पनहाय
बछरु ला अलगात गरीबा, दुहे बखत हुमेलन झन पाय.
बछरु हा छटकारत तब ले झींकत हवय गरीबा ।
सुद्धू दूहत दूध चरर माड़ी पर राख कसेली ।।
काम खत्म कर सूद्धू हटथय, करिस गरीबा पिला अजाद
गाय के थन ला बछरु चीखत, मिट्ठी दूध ला लेगत पेट.
कमती दूध गरीबा देखिस, तंह सुद्धू तिर रखथय प्रश्न –
“”काबर खोंची अस निचोय हस, मोर पिये बर कमती होत”
“”बछरु घलो हमर अस प्राणी, पोंस के करिहंव बली जवान
कृषि के काम ला अड़ निपटाहय, बइला होथय कृषक के मित्र.”
सुद्धू हा कहि दूध चुरो झप, पुत्र ला परसिस दूध अउ भात
बइठ पालथी खात गरीबा, धोइस हाथ छके के बाद.
सुद्धू हा पट्टी-किताब दिस, कथय गरीबा ला कर स्नेह-
“”शाला जाय टेम हा हो गिस, उहां पहुंच के तंय पढ़ खूब.
जमों छात्र मन तोर हितैषी, उंकर साथ तंय रखबे प्रेम
ककरो गुमे जिनिस यदि पाबे, ओकर चीज ला लहुटा देव.
तोर ध्यान ला हरदम रखथव, तब मंय राखत हंव वि•ाास
तोर शिकायत आय कभुच झन, नेक राह पर रैंग सदैव”
तुरुत गरीबा हा चिढ़ जाथय- “”शाला जाय बढ़ाथंव गोड़
चिक चक कर-उपदेश पियाथस, अब ले भाषण ला रख बंद.
एकर बदला एक काम कर- मोला पढ़ा गणित-विज्ञान
तोर समय हा ठीक कट जाहय, विकसित होहय मोर दिमाग”
सुद्धू हा प्रसन्न हो जाथय- “”अब मोला हो गिस सब ज्ञात
विद्या पाय तोर रुचि बढ़ गिस, निश्चय उज्जवल तोर भविष्य.
विषय के प्रश्न के उत्तर खोजत, खोज करत जिज्ञासु समान
जग मं कठिन प्रश्न हे कई ठक, तिहिंच एक दिन देबे ज्वाप.
एक बात मंय कहे चहत हंव – तंय कतको बड़का बन जास
मगर हमर बर नानुक शिशु अस, सदा गाय बर बछरु आस.
हम डरथन- तंय गलत रेंग झन, तब हम देवत रथन सलाह
यद्यपि तोला अनख जनावत, पर आखिर तोरेच भर लाभ”
बुस्ता ला धर लीस गरीबा, कूदत निकल जथय घर छोड़
धनवा घलो आय सहपाठी, तेकर घर मं बिलमिस गोड़.
सोनू अपन पुत्र धनवा ला, देत ताड़ना तिर मं रोक-
“”बेटा, मंय हा जउन बतावत, राख सुरक्षित अंतस- टोंक.
ज्ञान पाय शाला मं जावत, उहां उपस्थित कई झन छात्र
उंकर साथ हंस – खेल – मजा कर, पर अस्मिता अलग मं राख.
उनकर स्तर निम्न – गिरे अस, तन के घिन मिन – दीन – दलिद्र
तंय सम्पन्न – धनी के बेटा, तोर ओहदा – पद हा उंच
छात्र साथ तंय प्रेम बना रख, मुह ले हेर शहद अस बोल
पर वास्तव मं होय दिखवा, अंदर ह्मदय घृणा ला राख.
फिल्म के नायक बहुत सयाना, जेहर चलत कपट के चाल
पर्दा मं पर के मदद करथय, रोथय पर के दुख ला देख.
पर वास्तव मं मदद ले भगथय, पर के दुख ले बेपरवाह
अभिनय करे रथय सर्वोत्तम, फूले रथय ह्मदय के फूल.
तंय शाला जा ज्ञान पाय बर, गठिया राख मोर सब सीख
तब जीवन भर छुबे सफलता, कठिन राह ले लगबे पार.”
बुजरुक हा केंवरी माटी ला देवत गलती शिक्षा।
तभे मनुष्य के बीच विषमता होथय युद्ध – लड़ाई ।।
वर्तमान मं धनवा नानुक, कान देत नइ ददा के बात
पर भविष्य मं निश्चय धरिहय, ददा किहिस ते गलती राह.
देखत हवय गरीबा बोकबोक, कुछ समझत-समझत नइ आध
लेकिन असर अवश्य बतावत, तब मुंह पर परिवर्तन – भाव.
धनवा मनगभरी अस निकलिस, बस्ता ला धर बाहिर पार
धरिस गरीबा के अंगरी अउ, जावत पढ़े कदम्मा मार.
एमन सड़क के पास मं पहुंचिन खावत चरबन-दाना ।
लड़की मन हा फुगड़ी खेलत- गावत सुर से गाना ।।
गोबर दे बछरु गोबर दे
चारों खूट ला लीपन दे
चारो देरानी ला बइठन दे
अपन हा खाथय गूदा गूदा
मोला देथय बीजा बीजा
ऐ बीजा ला काय करिहंव
रहि जाहंव तीजा
तीजा के बिहान दिन
सरी-सरी लुगरा
कांव – कांव करे मंजूर के पीला
हेर दे भउजी कपाट के खीला
एक गोड़ मं लाल भाजी
एक गोड़ म कपूर
कतेक ला मानों मंय देवर – ससुर
फुगड़ी रे फुन . . . . ।।
फुगड़ी रे फुन . . . . ।।
शाला के घण्टी हा बाजिस, भगिन छात्र मन गुण अमराय
उहां बइठथंय पास मं घंसरत, धनी – दीन सब एक समान.
शिक्षक मिलतू सीख देत सम, सब ला हांकत लउठी एक
छात्र लड़त तंह फिर मिल जावत, भूलत तुरुत शत्रुता बैर.
इही बीच एक घटना घटगिस, धनसहाय के गुम गिस पेन
ओहर मिलतू गुरु ला बोलिस – “”मोर समस्या ला सुलझाव-
मोर पेन हा कहां गंवा गिस, ओला मंय खोजत हंव खूब
पर ओकर दउहा नइ पावत, कामें लिखंव उमंझ नइ आत ! ”
मिलतू हा सब छात्र ला बोलिस – “”भाई बहिनी अस तुम आव
एक दूसरा के शुभचिंतक, मोर मान लव नेक सलाह-
धनसहाय के पेन गंवा गिस, तुम्मन खोजव कर के यत्न
यदि कोई ला पेन हा मीलय, धनवा के असलग मं देव”
कथय गरीबा, – प्रश्न रखत हंव, ओकर ज्वाप देव तुम खोल
यदि एको झन पेन पाय तब, ओहर पाय मुफ्त मं लाभ.
ओकर बात गुप्त हे अब तक, सब के नजर मं मनसे नेक
घाव के मूड़ी बंद हे तलगस, बाहिर तन नइ बहय मवाद.
अगर पेन ला लहुटा देहय, ओकर एक पेन के हानि
ऊपर ले बदनाम हो जाहय, सब के नजर मं घालुक चोर.
अब तुम हा बताव ठोसलग अस – जउन पाय धनवा के पेन
ओहर कार जिनिस लहुटावय, यदि लहुटात बड़े तब भूल ?”
मिलतू किहिस – “”तर्क हे उत्तम, ओहर पाय नगद अस लाभ
पर वास्तव मं हानि बहुत ठक, मंय बतात हंव बिल्कुल साफ –
मान लेव “”क” पेन पाय हे, लुका के राखत खुद के पास
ओकर नीयत गिरतेच जाहय, पर के जिनिस मं लालच खूब.
फोकट पाय यत्न ला करिहय, मगर कर्म ले भगिहय दूर
कर्महीन “”क” हा हो जाहय, ओहर सदा दुसर बर भार.
अगर जिनिस ला लहुटा देवत, ओकर सबो डहर सम्मान
महिनत के आदत हा बनिहय, बढ़ही खूब आत्मवि•ाास.
जेन छात्र हा पेन पाय-लहुटावय तुरते ताही ।
ओकर आदत सुधर जहय-पाहय सब ले वहवाही ।।
तुरुत गरीबा पेन निकालिस, सौंप दीस धनवा के हाथ
ओहर मिलतूगुरु ला बोलिस- “” अब मंय हा बतात हंव सत्य.
मंय चोराय नइ पेन काकरो, तरी मं गिर के रिहिस रखाय
देखेंव तंहने लालच मं मर, पेन उठा के झप धर लेंव”
मिलतू अैस गरीबा के तिर, ठोंकिस पीठ करत तारीफ-
“”तंय स्पष्ट बात बोले हस, ओकर ले मंय बहुत प्रसन्न.
मगर प्रश्न के उत्तर ला ढिल- पेन ला तंय काबर लहुटाय
नेक प्रेरणा कहां पाय हस, कते मनुख बांटिस सत सीख ?”
कथय गरीबा- “”पेन कीमती, मंय नइ लहुटातेंव तिनकाल
लुका के रखतेंव ठउर सुरक्षित, जातिस घर छुट्टी के बाद.
मगर मोर संग घटना घट गिस, शाला आय बढ़िस जब गोड़
तभे ददा हा मोला छेंकिस, मुड़ ला सार राह ला दीस-
पर के गुमेे जिनिस यदि पाबे, लहुटा देबे ओकर चीज
ओकर बल्दा श्रम रउती कर, बिसा सकत बढ़िया अस चीज.
ददा के पाठ गांठ बांधेव मंय, अमर देव धनवा के चीज
मुड़ के भार लगत उतरे अस, धकधक ह्मदय घलो अब शांत”
मिलतू हा धनवा ला बोलिस- “”विचलित रथय व्यक्ति के बुद्धि
धरे जिनिस ले ध्यान हटत तब, ओकर जिनिस कभुच गुम जात.
धनवा तंय हा सच ला फुरिया, शिक्षा काम पेन बिन बंद
ओकर याद भुलाये काबर, आखिर काबर गुम गिस पेन ?”
धनवा बोलिस- “”तंय ठंउका अस, बिल्कुल ठीक तोर अनुमान
शाला आय तियार होय तंह, ददा हा मोला रोकिस टोंक.
बोलिस- शाला मं कई लइका, उंकर साथ हंस-पढ़ लिख खेल
पर अस्मिता कुथा रख तंय हा, खुद ला राख उंकर के ऊंच.
उही बात किंजरत दिमाग मं, खुद ला पूछत मंय कई बार-
का वास्तव मं मंय हंव ऊंचा, अउ मनखे मन कीरा – निम्न ?
इही विचार खोय मंय घोखत, पेन डहर ले हटगिस ध्यान
कतका बखत कोन तिर गिर गिस, मोला एकोकन नइ याद”
मिलतू हा सब छात्र ला बोलिस- “”सम्मुख मं मिल गिस परिणाम
सही सीख के मिलिस उचित फल, गलत बुद्धि के करुहा नाम.
सोनू मण्डल गलत सीख दिस, तब धनवा हा टोंटा पैस
सुद्धू हा पथ नेक बताइस, तभे गरीबा इज्जत पैस.
दुख के गोठ तउन ला सुनलव, हम शाला मं बांटत ज्ञान
प्रेम सहिष्णुता अउ समानता, सेवा दया – वि•ा बंधुत्व.
पर पालक मन घर मं देवत, कटुता भेद के गलती सीख
पालक के प्रभाव बालक पर, तब पालक के मानत बात.
लइका भगत लक्ष्य ले दुरिहा नष्ट होत हे भावी ।
करथय काम समाज के अनहित पात घृणा – बदनामी ।।
मिलतू फेर छात्र ला बोलिस – “”मोर तो अतका कहना साफ
कृषक ला मिलथय गोंटी – पथरा, अन्न के दाना अउ कई चीज.
ओहर फेंकत व्यर्थ जिनिस ला, बोवत खेत अन्न के बीज
ओकर ले अनाज हा उपजत, अन्न झड़क सब प्राण बचात.
उसनेच तुम्हर राह भर बिखरे, गुण – अवगुण अउ सत्य असत्य
तुम उत्तम सिद्धान्त ला चुन लव, सकुशल रहि पर हित ला जोंग”
शाला हा जब बंद हो जाथय, जमों छात्र मन बाहिर अैन
धनसहाय सुखी सनम गरीबा, खेल जमाय गीन मैदान.
उंकर हाथ मं गिल्ली डंडा, ओमन चूना तक धर लाय
तुरते घेरा गोल बना लिन, जोंड़ी बने करत हें घोख.
धनवा किहिस – सुझाव देत हंव, अब प्रारंभ खेल हा होय
सनम गरीबा गड़ी एक तन, मंय अउ सुखी दूसरा कोत.”
छेंकिस सनम “”नहीं रे भैय्या, तुम्हर बात हा अस्वीकार
सनम गरीबा गड़ी बनन नइ, ओकर साथ भुगत मंय गेंव.
हम नांगर के खेल करेन तब, बइला बनेंव गरीबा साथ
खेल मं मजा अमरतेन लेकिन, चलिस गरीबा कपट के चाल.
गल्ती करिस दण्ड ला पातिस, पर मंय खाय इरता के मार
एकर ददा दीस कंस गारी, जमों डहर ले मंय बदनाम.
तब अब फेर भूल झन होवय, आज खेल मं मिलय अनंद
मोला तुम दूसर मितवा दव, रहंव गरीबा ले मंय दूर”
खूब खलखला हंसिस गरीबा – “”जुन्ना लड़ई ला झन कर याद
बिते बात गनपत के होथय, वर्तमान पर राख निगाह.
मिलतू गुरु किहिस हे हमला, शांति अशांति मित्रता युद्ध
युद्ध-अशांति ला तज दो तुम हा, शांति मित्रता ला धर लेव.
तंहू बुद्धि मं सदभावना रख, गलत विचार ला बिल्कुल त्याग
“गिल्ली डंडा’ खेल हा उत्तम, खेल भावना रख के खेल.”
मात्र तीन चिट लिखिस गरीबा, सुखी गरीबा धनवा नाम
तंहा सनम ला कथय गरीबा- “”मात्र तीन चिट मंय लिख देंव.
तंय हा हेर एक चिट झपकुन, चिट मं जेन व्यक्ति के नाम
उही खिलाड़ी तोर गड़ी सुन, बचत तेन मन दूसर पक्ष.”
सनम निकालिस तुरुत एक चिट, ओमां धनसहाय से नाम
सुखी कथय- “”अब पूर्ण तोर मन, गीस गरीबा तोर विपक्ष.
तुम धनसाय एक बन खेलव भेद ला डारो लद्दी ।
दूसर डहर गरीबा अउ मंय खेलन छोड़ के बद्दी ।।
धनवा कथय- “”बेर झन होवय, खेल शुरु हो जाय तड़ाक
पहिली दामा कोन हा लेवय, एकर बात साफ कर देव ?”
कथय गरीबा- “”चिट हा निकलिस, पूर्ण होय तब मंसा तोर
अब हमला दामा लेवन दव, दुनों पक्ष के सम अधिकार.”
बोलिस सनम- “”हुंकी हम देवत, हमरे दलके मोंगरा नाम
तुम्हर दल के गोंदादल सुन, अंतः ह्मदय करो स्वीकार”
खेल ला शुरु करिन जम्मों मिल, सुखी रखिस गिल्ली ला भूमि
ओकर छुचकी भाग ला जोखिस, लउठी मं कंस के रचकैस.
गिल्ली हा सनसना के उड़गे, आगू डहर सनम हे ठाड़
करिस यत्न गिल्ली झोंके बर, पर असफल चल दिस सब यत्न.
आखिर गिल्ली गिरिस भूमि पर, सनम हा उठवा लिस तत्काल
फेंकिस गोल घेर के अंदर, उहू लक्ष्य रहि गीस अपूर्ण.
धनवा रिहिस गोल के अंदर, गिल्ली तूकत खोल के आंख
पर गिल्ली हा तीर अैस नइ, बोचक उड़ागे दूसर ओर.
सुखी खड़े घेरा के बाहिर, गिल्ली ला रोकिस फट मार
गिल्ली हा जमीन पर गिर गिस, गोंदा दल हा पावत जीत.
सुखी गरीबा दामा लेवत, दामा देत सनम धनसाय
धनवा कहिथय – “”काय करन अब, धुंकनी असन चलत हे सांस.
तोर उदारता लैस मुसीबत, गोंदादल ला दामा देन
ओहर अब तक रगड़ा टोरत, हम तुम कुटकुट ले थक गेन.
तंय हा हेर उपाय उचित अस, हम पारी ला झपकुन पान
गोंदा दल अस दामा लेवन, हमर सिरी हा ऊपर जाय.”
धनवा अपन गड़ी ला बोलिस, सुनत गरीबा रोकिस खेल
धनवा मन ला समय देत अब, टूटय झन आपुस के मेल.
बोलिस- “”गांव के हम भाई अन, हमतुम कपट भेद ले दूर
तुम्मन अब निराश झन होवव, चलव तुमन भी दामा लेव.”
धनवा हा जंह दामा पाइस, गिल्ली ला रटरट रचकैस
सुखी गरीबा गिल्ली झोंकत, पर आखिर मं पावत शून्य.
मुचमुच हंसत सुखी हा बोलिस- “”भुखहा ला जेवन मिल जाय
ओहर जेवन गटगट लीलत, थारी तक ला चाबत खूब.
धनवा ला दामा का मिल गिस, हमर जान लेवत कर तंग
सोग मरत नइ हम दूनों पर, देखत हे बस अपन अनंद.
धनवा हा मुसकावत बोलिस – “”तुम झन होव व्यर्थ परेशान
सनम ला मंय गिल्ली देवत हंव, उहू ला दामा लेवन देव.”
सनम हा भिड़ के दामा लेवत, इसने कटिस बहुत अक टेम
सनम हा गिल्ली हा रचकाइस, ओहर उड़िस सनसना खूब.
आगू खड़े सुखी हा तूकत, गिल्ली झोंक लीस कुछ कूद
जमों मितान होत अब हर्षित, थपड़ी पीटत भर के जोश.
ठीक बखत मं खेल खत्म तंह, अपन मकान लहुट गिन छात्र
एको झन ला चोट परिस नइ, सकुशल बचिस जमों के देह.
ओ मनखे के जनम अबिरथा जउन अपढ़-अज्ञानी ।
ओकर उंचहा दृष्टिकोण नइ-मेचका के जिंनगानी ।।
जे मनसे श्रमखेल मं भिड़थय ओकर तन हा लोहा ।
मान प्रतिष्ठा मिलत सबो तिर-हिम्मत बढ़थय दूना ।।
चरोटा पांत समाप्त